► एक छात्र को समूह के लिए मत्ती 19:16-22 पढ़िए चाहिए। यीशु का उस व्यक्ति को उत्तर देने के विषय में आपको क्या आश्चर्य हुआ? यदि आप ने एक मित्र को किसी व्यक्ति को उत्तर देते हुए सुना जिसने पूछा कि अनन्त जीवन कैसे प्राप्त करें, तो आप अपने मित्र को क्या समझाना चाहेंगे?
कल्पना करें कि आप एकदम तंदरुस्त है, लेकिन एक मित्र आपके पास आता है और कहता है कि उसने एक जानलेवा बीमारी का इलाज खरीदा है।[1] जिसके लिए, उसने अपना घर और अपना सब कुछ बेच दिया। उसने आपके लिए यह इलाज खरीदा है।
► तो आप अपने मित्र से क्या कहेंगें जब वो आपको वो उपहार दे?
आप उसकी उदारता के लिए उसे धन्यवाद देंगे, लेकिन आप उपहार को समझ नहीं पाएंगे। वह आपके लिए कुछ खरीदने के लिए इतना कुछ क्यों देगा, जिसकी आपको आवश्यकता नहीं हैं ?
आप एक अलग कहानी की कल्पना करें। आप चिकित्सक के पास गए और पाया कि आपको एक घातक बीमारी है। इलाज बहुत महंगा है, और आपके पास इसके लिए भुगतान करने का कोई तरीका नहीं है। आप घर जाकर मृत्यु के बारे में सोचते है, यह महसुस करते हुए कि आपका परिवार आपको खो देगा और आप जीवन से जो आशा करते है वह कभी भी अनुभव नहीं कर पाएंगे। फिर एक मित्र आता है और आपको बताता है कि उसने आपके इलाज के लिए सब कुछ दे दिया है।
आप इसकी सराहना करते है क्योंकि आप अपनी ज़रूरत को पहले समझते है। उसका उपहार आपके लिए जीवन हैं।
अब जगत के लोगों की प्रतिक्रिया के बारे में सोचे जब वे सुसमाचार को सुनते है। सुसमाचार शब्द का अर्थ है ‘‘अच्छी खबर’’, लेकिन बहुत से लोग यह नहीं समझते कि वह अच्छी खबर क्यों है।
राहुल नामक एक व्यक्ति की कल्पना कीजिए। उसका मित्र उसे बताता है, ‘‘यीशु एक बलिदान के रूप में क्रूस पर मर गया ताकि आपके पापों की क्षमा हो सके’’।
राहुल सोचता है, ‘‘मैं एक बुरा व्यक्ति नहीं हूँ। मैं अपने मित्रों और परिवार के लिए अच्छा हूँ। मेरे पापों के लिए इतने बड़े बलिदान की आवश्यकता क्यों है? क्षमा इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?’’। राहुल शायद गुस्सा हो सकता है कि उसका मित्र सोचता है वह एक बुरा पापी है जिसे अपनी क्षमा के लिए यीशु की मृत्यु की आवश्यकता है।
बाइबल हमें बताती है कि लोग क्रूस से नाराज हैं। लोग खुद को सही ठहराने का तरीका खोजना चाहते हैं। उन्हें नहीं लगता कि उन्हें यीशु के बलिदान की आवश्यकता है, इसलिए क्रूस उन्हें मूर्खता से भरा लगता है (1 कुरिन्थियों 1:18)।
किसी बीमारी के इलाज के बारे में चित्रण की तरह, लोग क्रूस की सराहना नहीं करते हैं क्योंकि वे समझ नहीं पाते हैं कि उन्हें इसकी आवश्यकता क्यों है।
लोगों को खुशखबरी के लिए तैयार करने का बाइबल का तरीका है, उन्हें यह दिखाना कि उन्हें इसकी आवश्यकता क्यों है। उन्हें यह महसूस करने की आवश्यकता है कि वे पापी है जिन्हें जल्द ही परमेश्वर द्वारा न्याय किया जाएगा।
► सुसमाचार को सुनने से एक व्यक्ति को खुशी क्यों होनी चाहिए?
[1]इस पाठ की अधिकांश सामग्री (Ray Comfort) रे कम्फर्ट द्वारा धर्मोपदेश “Hell’s Best-Kept Secret” ("हेल्स बेस्ट-केप्ट सीक्रेट") और सामान शीर्षक की पुस्तक द्वारा प्रस्तुत की गई है। अधिक सामग्री http://www.livingwaters.com पर उपलब्ध है।
न्याय का महत्व
वास्तविकता यह है कि पापियों का न्याय होगा और दण्ड दिया जायगा पापी के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारण है कि वह सुसमाचार सुनकर खुश हो जाए।
‘‘और जैसे मनुष्य के लिए एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है’’ (इब्रा 9:27)
‘‘और मै तुम से कहता हूँ, कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे।’’ (मत्ती 12:36)
► प्रकाशितवाक्य 20:12-15 में न्याय का वर्णन पढ़े।
पापियों का भावी न्याय प्राथमिक कारण है कि हर पापी को उद्धार की आवश्यकता है।
परमेश्वर सभी को पश्चाताप करने की आज्ञा देता है, ‘‘क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है जिसमें वह जगत का न्याय धर्म से करेगा’’ (प्रेरितों के काम 17:30-31)
यदि कोई व्यक्ति यह नहीं समझता है कि उसका पाप गंभीर है, तो उसके पास उद्धार की इच्छा रखने के सबसे महत्वपूर्ण कारण का अभाव है।
► एक व्यक्ति के लिए उसका पाप गंभीर है इसका एहसास उसे कैसे होगा?
व्यवस्था का उपयोग
बहुत से लोगों को सुसमाचार में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि वे खुद को दोषी नहीं मानते हैं। पवित्रशास्त्र कहती है कि ज्यादातर लोग खुद को अच्छा मानते हैं (नीतिवचन 20:6)। अगर आप किसी से पूछें कि वह एक अच्छा इंसान है या नहीं, तो वो संभावित रूप से ‘‘हाँ’’ कहेंगे और ख़ुद के लिए बहस करने के लिए तैयार होंगे। ज्यादातर लोगों को लगता है कि उनके पाप बुरे नहीं हैं, और यह कि उनहे छोड़ दिया जाये। उन लोगों को अनुग्रह और क्षमा देने का कोई मतलब नहीं है।
व्यक्ति को ख़ुद को एक पापी के रूप में देखना चाहिए और वह अपनी अंतरात्मा द्वारा कायल होना चाहिए, इससे पहले कि वह खुद को अनुग्रह की आवश्यकता में देख सके। परमेश्वर ने पाप दिखाने के लिए व्यवस्था दी है।
व्यवस्था शब्द से हमारा मतलब विशेष रूप से पुराने नियम की अनुष्ठानिक आवश्यकताओं से नहीं है जो कि मंदिर मे आराधना को निर्देशित करती है। हम उन व्यवस्था के बारे में भी बात नहीं कर रहें है जो इज़राएल की सरकार के लिए दिए गए थे, जो हमारे लिए उसी तरह लागू नहीं होते हैं। हम परमेश्वर की धार्मिकता के स्तर के विषय में बात कर रहें है। राजा दाऊद ने भजन 119 में लिखा है कि जैसे वह परमेश्वर से प्यार करता था वैसे ही वह परमेश्वर के नियम से प्यार करता था, क्योंकि यह परमेश्वर के अपने पवित्र चरित्र से आया था।
परमेश्वर कि व्यवस्था हमें दिखाती है कि हमें कैसे जीना चाहिए, और हम उसकी आज्ञाओं का उलंघन करने के लिए दोषी हैं। व्यवस्था के द्वारा कोई धर्मी नही ठहर सकता (गलातियों 2:16, रोमियो 3:20) क्योंकि सभी ने पाप किया है। एक व्यक्ति व्यवस्था का दुरुपयोग कर रहा है अगर वह सोचता है की इसका अनुसरण करने से उद्धार प्राप्त करेगा।
परमेश्वर की व्यवस्था हमारे जीवन का निर्देश्न करती है (1 कुरिन्थियों 9:21), लेकिन यह हमारे उद्धार का उपाय नही है। व्यवस्था हमें उद्धार नहीं दिला सकी क्योंकि जन्म से ही हमारे पास इसकी आवश्यकताओं को पूरा करने की पूरी क्षमाता और योग्यता नहीं हैं (रोमियों 8:3; गलातियों 3:21)।
परमेश्वर की योजना में व्यवस्था सुसमाचार के विरोध में नहीं है। बाइबल हमें बताती है कि व्यवस्था पापी को उद्धार की आवश्यकता का एहसास कराने के उद्देश्य से कार्य करती हैं। सुसमाचार ने व्यवस्था को नष्ट नहीं किया है(मत्ती 5:17) या हमारे लिए उसे अनुचित नहीं ठहराया है। व्यवस्था सुसमाचार के लिए न केवल प्राचीन समय में, बल्कि इस समय में भी सही तैयारी के रूप में कार्य करती है।
व्यवस्था एक शिक्षक है जो हमें मसीह के ओर ले जाती है (गलातियों 3:24)। कुछ लोगों को लगता है कि व्यवस्था का एक समय था, जो खत्म हो गया है, और अब अनुग्रह का समय है। तथ्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को परमेश्वर की व्यवस्था का सामना करना होगा, और एहसास होना चाहिए की अनुग्रह को समझने से पहले वह दोषी ठहरता है। पौलुस ने कहा है, ‘‘बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहिचानता’’। (रोमियों 7:7)
पौलुस ने कहा कि व्यवस्था इसलिए दी गयी है ताकि पापियों को दोषी और बिना किसी बहाने के दिखाया जाए; क्योंकि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहचान होती है (रोमियों 3:19-20)। प्रत्येक व्यक्ति व्यवस्था के अधीन है और जब तक वह बचाया नहीं जाता है, वह उसके द्वारा दोषी ठहरता है।
सुसमाचार एक ऐसे व्यक्ति के लिए अच्छी खबर नहीं है जो यह नहीं जानता कि उसका पाप गंभीर है। सुसमाचार एक ऐसे व्यक्ति के लिए अच्छी खबर है जो जानता है कि वह दोषी है और जल्द ही उसे परमेश्वर के न्याय का सामना करना है।
► एक छात्र को समूह के लिए लूका 18:10-14 पढ़े चाहिए। यदि किसी ने फरीसी से कहा होगा कि उसे परमेश्वर की कृपा से स्वतंत्र रूप से क्षमा किया जा सकता है, तो उसने कैसे जवाब दिया होगा?
एक आधुनिक सुसमाचारसम्मत त्रुटि
आज कई सुसमाचार प्रचारक इस बात पर ज़ोर देना पसंद नहीं करते है कि हर व्यक्ति पाप का दोषी है और परमेश्वर के न्याय का हकदार है।
वे लोगो को यह बताना नहीं चाहते कि वे बुरे हैं।
[1]नकारात्मक के बजाय वे सकारात्मक चीजों के बारे में बात करना चाहते है।
वे अनन्त के बजाय उद्धार के तत्काल लाभ की पेशकश करना चाहते हैं, क्योंकि वे ऐसे लोगों से बात कर रहे है जिनका इस जगत की चीजों पर ध्यान हैं।
वे कहते है कि परमेश्वर की व्यवस्था एक बुरी चीज है, उद्धार की शत्रु है, केवल उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो कर्मों द्वारा बचना चाहते हैं। बाइबल कहती है कि व्यवस्था अच्छी और पवित्र है (रोमियों 7:12-14); वह व्यक्ति जो परमेश्वर को प्रसन्न करना चाहता है वह जीवन के लिए परमेश्वर के निर्देशों का पालन करने की कोशिश करेगा। (भजन 119:1-8)
वे कहते हैं कि परमेश्वर का स्तर असंभव और अनुचित है, और आप अपने पापों के लिए दोषी नहीं हैं।
समस्या यह है कि अगर कोई व्यक्ति वास्तव में दोषी नहीं है, तो वह वास्तव में पश्चाताप नहीं कर सकता है। जब तक वह नहीं जानता कि उसने गलत करने का विकल्प चुना है, उसके लिए उसे खेद नहीं होगा। यदि कोई व्यक्ति वास्तव में खुद को पापी नहीं मानता है जब वह माफी मांगता है, तो वास्तव में वह परमेश्वर से अपनी मानवीय असफलताओं को स्वीकार करने के लिए कहता है।
सच यह है कि पापियों को पापी स्वभाव के साथ पैदा होने के लिए दोषी नहीं माना जाता है। बल्कि परमेश्वर के खिलाफ उनके जान-बूझकर किये गए पापों और विद्रोह के रवैये के लिए दोषी ठहराया जाता है। (यहूदा 15)
बहुत से लोग विश्वास करते है कि परमेश्वर प्यार करने वाला और क्षमा करने वाला है, लेकिन उन्हें यह एहसास नहीं है कि वह एक धर्मी न्यायाधीश भी है। वे अपेक्षा करते है कि अगर वे कभी परमेश्वर से मिले, तो वे उन्हें क्षमा कर देंगे भले ही उन्होंने कभी भी पश्चाताप नहीं किया हो। उन्होंने जो अधूरा सुसमाचार सुना है उसने उन्हें उनके पापों में और अधिक सहज बना दिया है।
आजकल के कई प्रचारक इस बात पर ज़ोर देते हैं कि यदि कोई व्यक्ति मसीही बन जाता है, तो उसके पास एक खुशहाल जीवन होगा। वे कहते है कि पाप संतुष्ट नही करता है, लेकिन परमेश्वर करता है। वे कहते है कि व्यक्ति को प्यार, शांति और आनन्द प्राप्त होगा। वे कहते है प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के लिए परमेश्वर के पास एक अद्भुत योजना है, और अगर वह व्यक्ति बच जाता है तो वह योजना पूरी हो जाएगी।
इन वादों को गलत समझा जा सकता है। परमेश्वर प्यार और शांति देता है, लेकिन वहाँ पर विश्वासियों और जो लोग परमेश्वर को अस्वीकार करते है के बीच मे टकराव होगा (मत्ती 10:34-36)। वह आनन्द देता है, परन्तु उसी समय सताव भी हो सकता है (1 थिस्सलुनीकियों 1:6)। उनके पास प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक अद्भुत योजना है, लेकिन एक मसीही को कठिन परिस्थितियों और त्रासदियों का अनुभव हो सकता है (2 कुरिन्थियों 11:24-27)। यदि कोई व्यक्ति मसीह बनने का फैसला इसलिए करता है क्योंकि उसे लगता हैं कि उसके जीवन की स्थिति बेहतर हो जाएगी तो वह निराश हो सकता है। कुछ लोग गंभीर रूप से पीड़ाओं को सह रहें हैं क्योंकि वे मसीही हैं।
मसीही होने के नाते, हम समझते हैं कि परमेश्वर के साथ जीवन अद्भुत है, भले ही हम कठिन परिस्थितियों को भुगतें। हम कह सकते हैं कि परमेश्वर की सेवा एक अद्भुत जीवन है। हालांकि, अधिकांश अविश्वासी लोगों को यह पता नहीं है कि एक अद्भुत जीवन क्या है। यदि आप उन्हें एक अद्भुत जीवन का वर्णन करने के लिए कहते हैं, तो वे स्वास्थ्य, धन, स्वतंत्रता, शांति और अन्य अच्छी स्थितियों के बारे में बात करते हैं। वे यह नहीं समझेंगे कि एक सताए गए, पीड़ित मसीही के पास एक अद्भुत जीवन है। इसलिए, यदि आप एक पापी को बताते हैं कि यदि वह मसीही बन जाता है तो उसके पास एक अद्भुत जीवन होगा तो वह शायद समझ नहीं पाएगा कि आप क्या वादा कर रहे हैं।
सुसमाचार की गलत समझ के साथ एक और समस्या है। कोई व्यक्ति खुद को पापी न्याय के पात्र के रूप में देखे बिना संदेश को स्वीकर कर सकता है। क्योंकि वह पाप की गंभीरता को नहीं देखता है, वह वास्तव में पश्चाताप नही करता है। वह पाप से मुक्ति की तलाश में नहीं है, परन्तु अन्य लाभों की तलाश में है। उसे लग सकता है कि वह बचाया गया है लेकिन वास्तव में वह बचाया नहीं गया है।
उसे अपने जीवन के लिए उद्धार का सही लाभ भी नहीं मिलता है, क्योंकि उसे बचाया नहीं गया है। वह थोडे समय के लिए कोशिश करता है और फिर निराशा में हार मान लेता है।
गलत सुसमाचार का सबसे बुरा परिणाम यह है कि जो व्यक्ति निराश हो गया उसकी भविष्य में सुसमाचार को अपनाने की संभावना कम होगी।
सारांश में, बेहतर जीवन के सुसमाचार के साथ जो समस्याएं हैं
1. ये वो वादा करता है जो परमेश्वर नहीं करता है।
2. यह पापी द्वारा गलत समझा गया है।
3. व्यक्ति वास्तव में परिवर्तित नहीं हुआ होगा।
4. जो वह अपेक्षा करता है वह उन लाभों को प्राप्त नहीं कर पाएगा।
5. उसे भविष्य में सुसमाचार को स्वीकार करने की कम संभावना है।
► एक छात्र को समूह के लिए प्रेरितों के काम 14:21-23 पढ़ना चाहिए। प्रेरितों ने नये विश्वासियों को क्या अपेक्षा करने के लिए कहा?
यीशु ने अपने शिष्यों को चेतावनी दी कि लोग मसीह में उनके विश्वास के कारण उनसे घृणा करेंगे। उसने उन्हें बताया कि पर जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा। तीन सुसमाचार के लेखकों ने इन शब्दों को दर्ज किया है (मत्ती 10:22; मरकुस 13:13; लूका 21:17)। मूल प्रेरितों में से अधिकांश मसीह के लिए मारे गए।
उनके विश्वास के लिए लाखों मसीही मारे गए हैं। यह सिर्फ एक प्राचीन समस्या नहीं हैं। 20 वी शताब्दी में आधें से अधिक मसीही मारे गए।
यदि कोई व्यक्ति एक आसान जीवन के वायदे के बिना उद्धार के वायदे के कारण परिवर्तित हो जाता है तो वह कठिन जीवन के कारण हार नहीं मानेगा। वह अनन्त उद्धार के लिए परीक्षाओं को सहने के लिए तैयार रहेगा। परीक्षाएँ उद्धार को उसके लिए और भी कीमती बना देती है।
उद्धार अतीत से ऐसा पूर्ण विराम है कि यह मृत्य के सन्दर्भ में बात करता है। हम मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाऐ गएं है। उसके क्रूस के द्वारा, हम इस ईश्वर रहित जगत, उसके दृष्टिकोण और इसके मानकों के लिए मर गए हैं।
(विश्व सुसमाचारिता के लिए लूसान समिति, विलोबैंक रिपोर्ट)
प्रेम का प्रदर्शन
► एक छात्र को समूह के लिए 2 तीमुथियुस 2:24-26 पढ़ना चाहिए। ये आयतें हमें सुसमाचार प्रचाराक के तरीके के बारे में क्या बताती हैं?
सुसमाचार प्रचारक को उन लोगों के साथ लड़ना नहीं चाहिए जिन्हें वह सुसमाचार दिया है। शैतान शत्रु है, और पापी उसके कैदी हैं। हमें सच्चाई को सज्जनता के साथ समझाना चाहिए। हमारा उद्देश्य उनकी मदद करना है, न कि उन्हें तर्क/विवादों में हराना हैं। इस भाग में जो शब्द इस्तेमाल किये गए है सजन्नता, नम्रता, और धैर्य भी शामिल है।
► एक छात्र को समूह के लिए तीतुस 3:2-5 पढ़ना चाहिए। यह भाग हमें सुसमाचार प्रचारक के व्यवहार के बारे में क्या बताता हैं?
हमें स्मरण रखना चाहिए कि परमेश्वर की कृपा के बिना, हम जगत के लोगों की तरह है। परमेश्वर हमारे पास न्याय नहीं, बल्कि दयालुता और प्रेम लेकर आया हैं।
एक सुसमाचार प्रचारक को पापी पर नहीं, लेकिन पाप और शैतान पर गुस्सा होना चाहिए। उसे कठोर नहीं होना चाहिए। उनके त्रुटियों को खोजने में खुशी नहीं होनी चाहिए, लेकिन उनके उद्धार के बारे में चिंतित होना चाहिए।
हमने अध्ययन किया है कि हम उन वायदों के द्वारा पापी को प्यार नही दिखाते है जिनका वायदा परमेश्वर नही करते हैं। हम ऐसा बर्ताव करके करूणा नहीं दिखाते जैसे कि उनके जीवन की समस्याएं उनके अनन्त नियति से अधिक महत्वपूर्ण हैं।
यीशु ने पूर्वकथन को पूरा किया कि मसीहा न झगड़ा करेगा, और न धूम मचाएगा; और न वह कुचले हुए सरकण्डे को तोड़ेगा;। (मत्ती 12:19-20)
► जब हम सुसमाचार का प्रचार कर रहे होते हैं तो वे कौन से कुछ तरीके हैं जिनसे हम परमेश्वर के प्रेम को प्रदर्शित कर सकते हैं?
पवित्र शास्त्रीय सुसमाचार प्रचार
सुसमाचार प्रचार के लिए बाइबल का दृष्टिकोण लोगों को सुसमाचार प्राप्त करने के लिए तैयार करने के लिए परमेश्वर की व्यवस्था का उपयोग करना है। व्यवस्था पापियों को दोषी ठहराती है और उन्हें दिखाती है कि जब तक उन्हें माफी नहीं मिल जाती, उन पर न्याय आएगा।
यूहन्ना बपतिस्ता ने उपदेश दिया कि लोगों को प्रभु के आगमन की तैयारी के लिए पश्चाताप करना चाहिए और न्याय से बचना चाहिए (मत्ती 3:1-12)।
यीशु ने कई बार न्याय और नरक के बारे में प्रचार किया था। उसने उन लोगों पर अनुग्रह किया जो अपने पापों के लिए क्षमा चाहते थे।
► एक छात्र को समूह के लिए लूका 7:36-50 पढ़ना चाहिए। किस तरह के व्यक्ति को माफी की पेशकश की जाती हैं?
हम यीशु के सेवकाइ में कहीं नहीं पाते है कि उसने ऐसे लोगों को क्षमा की पेशकश की जिन्होंने अपने पापों के लिए खेद व्यक्त नहीं किया। उन्होंने लोगों को न्याय की चेतावनी दी। एक आपदा के बाद जब कई लोग मारे गए तो यीशु ने एक भीड़ से कहा कि वे सभी नष्ट हो जाएंगे जब तक कि वे पश्चाताप न कर ले। (लूका 13:1-5)
यीशु ने चूंगी लेने वाले और फरीसी की कहानी बताई, जिन्होंने विपरीत प्रार्थना की। चूंगी लेने वाले को खेद हुआ और उसे माफी मिली। फरीसी ने अपने आप को सही ठहराने की कोशिश की। फरीसी को माफी देने का कोई मतलब नहीं होगा, क्योंकि उसने विश्वास नही किया कि इसकी उसे जरूरत है।
प्रेरित पतरस ने अनन्त जीवन के वायदे का प्रचार किया और लोगों से पश्चाताप करने और क्षमा प्राप्त करने का आह्वान किया। (प्रेरितों के काम 2:38; प्रेरितों के काम 3:19, प्रेरितों के काम 5:31)
स्तिफनुस ने, यहूदी शासकों को प्रचार किया, अनुग्रह की पेशकश नहीं की, लेकिन उन्हें परमेश्वर का विरोध करने और व्यवस्था को तोड़ने के लिए दोषी ठहराया (प्रेरितों के काम 7:51-53)।
पौलुस ने प्रचार किया कि लोगों को पश्चाताप करना चाहिए क्योकि परमेश्वर पाप को ऐसे ही नहीं छोड़ देंगें (प्रेरितों के काम 17:30-31)
मसीह के अनुयायी होने से मिलने वाले आनंद और आशीषों के विषय में बात करना गलत नहीं है; लेकिन पवित्रशास्त्र में प्रचारकों का प्राथमिक तरीका पाप के प्रति कायलता और पश्चाताप, और न्याय से उद्धार की पेशकश के लिए प्रचार करना था
► एक छात्र को समूह के लिए 2 कुरि 5:11 पढ़ना चाहिए। प्रेरित ने क्या कहा कि उसने समझाने-बुझाने के लिए क्या इस्तेमाल किया?
► एक छात्र को समूह के लिए प्रेरितों के काम 24:25 पढ़ना चाहिए। पौलुस ने फेलिक् से किस विषय में बात की? फेलिक्स कैसे प्रभावित हुआ?
पवित्रशास्त्रीय सुसमाचार के प्रचार का एक उदाहरण
जब वह राहुल से मिले मनोज कलीसिया को निमंत्रण पत्र बांट रहे थे।
राहुल: मुझे कलीसी की जरूरत नहीं है।
मनोज: पवित्रशास्त्र कहती है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने पापों के लिए परमेश्वर के सामने न्याय के लिए खड़ा होना होगा। क्या आप सोचते है कि आप जैसे है वैसे ही परमेश्वर आपका स्वीकार करेगा?
राहुल: हाँ, मुझे ऐसा लगता है।
मनोज: क्या आप एक अच्छे इंसान हैं?
राहुल: हाँ, मुझे लगता हैं कि मैं हूँ।
मनोज: हो सकता है कि आप कई लोगों की तुलना में अच्छे हों। शायद आप अपने मित्रों और परिवार के लिए अच्छे हैं। लेकिन, क्या आप उस स्तर को जानते है जो परमेश्वर उपयोग करता है? पवित्रशास्त्र हमें बताती है कि परमेश्वर कैसे सही और गलत का न्याय करता हैं। उदाहरण के लिए, उसके कुछ नियमों को दस आज्ञाएँ कहा जाता है। क्या आप उस दस आज्ञाओं को जानते हैं?
राहुल: उनमे से कुछ जानता हूँ।
मनोज: उदाहरण के लिए, एक आज्ञा कहती है, ‘‘झूठी गवाह मत दों’’। क्या आप आपने जीवन में कभी ऐसा कुछ कहा जो सच नहीं था?
राहुल: बेशक, हर किसी ने कभी-कभी ऐसा किया है।
मनोज: लेकिन झूठ बोलना परमेश्वर की आज्ञा को तोड़ रहा हैं। दूसरा एक है चोरी न करना। क्या आपने कभी कुछ चुराया है?
राहुल: केवल छोटी चीजें, और मैंने कभी किसी को उनसे चोरी करके पीड़ित नहीं किया है।
मनोज: लेकिन परमेश्वर हमें यह ते करने के लिए आजादी नहीं देते कि हम क्या चुरा सकते हैं। उसकी आज्ञा यह है कि हम चोरी न करें। दूसरी एक बात यह है कि हम कभी भी परमेंश्वर का नाम व्यर्थ ना लें, बिना आदर के ना बोले, या इसे श्राप शब्द के रूप मे ना इस्तेमाल करें।
[हर एक आज्ञा का उपयोग किया जा सकता हैं, लेकिन एक वार्तालाप में सभी का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं हैं। नीचे कुछ उदाहरण हैं।]
परमेश्वर हमें व्यभिचार नहीं करने ले लिए कहते हैं, और यीशु ने कहा कि किसी स्त्री के लिए वासना करना अपने हृदय में व्यभिचार करना है।
परमेश्वर ने कहा है कि हत्या न करना, और यीशु ने कहा है कि किसी से नफरत करना हृदय में हत्या करने के बराबर है।
परमेश्वर ने कहा है कि उसके दिन को पवित्र रखें, क्या आपने प्रभु के दिन को हर सप्ताह को पवित्र रखा है?
परमेश्वर ने कहा है कि लोभ न करना। यह न सोचे कि परमेश्वर के बजाय चीज़े हमें खुश कर देगी, यह कामना करते हुए की औरों के पास जो है वह हमारे पास भी हो।
परमेश्वर हमसे कहते है कि हमारे लिए कोई अन्य प्रभु न हों, उसके अलावा और कुछ भी हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण ना रहे, जिसका अर्थ है कि कोई भी चीज हमें परमेश्वर की आज्ञा मानने और उसकी आराधना करने से रोकने ना पाएं, जिस के वह योग्य है।
[कई आज्ञाओं का उपयोग करने के बाद यह दर्शाने के लिए कि पापी दोषी है, हम निष्कर्ष पर जाते है।]
मनोज: अगर परमेश्वर ने आज आपका न्याय किया, तो आप उत्तीर्ण नहीं होंगे। आप उनके स्तर से दोषी होंगे। क्या आप जानना चाहते हैं कि आप कैसे माफ किए जायें ताकि आपको परमेश्वर के न्याय का भय न रहे?
[तब, सुसमाचार प्रचारक सुसमाचार को सुना सकता है और पापी को प्रार्थना के लिए आमंत्रित कर सकता है।]
► दो छात्रों को एक वार्तालाप प्रदर्शित करना चाहिए जिसमें एक छात्र दस आज्ञाओं का उपयोग करके सुसमाचार प्रस्तुत करता है। समूह उनके प्रदर्शन पर चर्चा कर सकता है। फिर छात्रों को जोडे़ में विभाजित करना चाहिए और इस प्रस्तुति का अभ्यास करना चाहिए।
► आप कैसे जानेंगे कि सुसमाचार सुनाना सफल हुआ है?
ज़ाहिर है कि हमारे सुसमाचार सुनाने के बाद अगर कोई व्यक्ति पश्चाताप करने का चुनाव करता है तो हम जान जाते है कि यह सफल हुआ है। लेकिन यह केवल सफलता का नाप नहीं है। परमेश्वर ही है जो सुनने वाले के हृदय में सच्चाई को दृढ़ करने के लिए जिम्मेदार हैं। यदि आप ने इस तरह से सुसमाचार सुनाया कि सुनने वाला समझ गया मगर आपने कभी कोई परिणाम नहीं देखे तो भी आपने कुछ महत्वपूर्ण किया है। यदि उसने समझा कि आपने उसकी चिंता की और उसकी मदद करने की आपकी इच्छा को महसूस किया तो वह भी अच्छा है। यदि वह गुस्सा या मजाक उड़ा रहा है तो इसका मतलब यह नहीं कि आप असफल हो गए हैं, खासकर तब जब वह सच के विषय में गुस्से में था। सुसमाचार के संदेश के द्वारा परमेश्वर सम्मानित होता है; जब आप इसे साझा करते हैं आप किसी महत्वपूर्ण बात के लिए सफल होते है।
कक्षा अगुए के लिए सूचना
यह सुसमाचार को प्रस्तुत करने के लिए एक प्रभावी तरीका हैं। यह महत्वपूर्ण है कि छात्र इसका उपयोग करना सीखें। अपने अगले कक्षा सत्र में, उन्हें अपने अनुभवों के बारे में बताने का समय दें जब उन्होंने इस पद्धति के साथ सुसमाचार को साझा करने का प्रयास किया। उन्हें एक-दूसरों को सलाह देने और प्रोत्साहित करने दें। इस तरह एक सत्र सार्थक साबित हो सकता है और अगले पाठ तक जाने के लिए अगले समय की प्रतीक्षा करें।
पाठ 8 कार्यभार
सुसमाचार को कम से कम तीन लोगों को पेश करें जिस तरह से मनोज ने इस पाठ में किया था। प्रत्येक वार्तालाप का वर्णन करने वाला एक पैराग्राफ लिखें। अगले कक्षा सत्र में इसके बारे में बताने के लिए तैयार रहें।
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