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► एक छात्र को समूह के लिए इफिसियों 1:4-9 पढ़ना चाहिए। इस अध्याय में कौन से महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाए जाते हैं?
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by Stephen Gibson
► एक छात्र को समूह के लिए इफिसियों 1:4-9 पढ़ना चाहिए। इस अध्याय में कौन से महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाए जाते हैं?
सुसमाचार प्रचार करने वाली कलीसिया एक ऐसी कलीसिया है जो केवल अनुग्रह द्वारा सिर्फ विश्वास से उद्धार का वचन आधारित सुसमाचार सिखाती है। मसीह के बलिदान में मिलाया गया मनुष्य का कोई भी अच्छा काम हमें उद्धार पाने में मदद नहीं कर सकता।
सच्चे सुसमाचार को प्रचारित करना सुसमाचार प्रचार करने वाली कलीसिया की प्राथमिकता है क्योंकि जो सुसमाचार जानते हैं वह मानते हैं कि सुसमाचार का प्रचार करना किसी अन्य बात से अधिक महत्वपूर्ण है।
सुसमाचार परमेश्वर द्वारा कलीसिया को सौंपा गया विशेष खज़ाना है जिसे वह दुनिया के साथ बाँटना चाहता है।
अधिकांश सुसमाचार प्रचार करने वाली कलीसिया को कुछ ख़ास विशेषताएं हैं। इन विशेषताओं को अगले भाग में दिया गया है:
1. सुसमाचार प्रचारक बाइबल के पूर्ण अधिकार में विश्वास करते हैं। बाइबल के पूर्ण अधिकार को अस्वीकार करने का अर्थ, सुसमाचार को विवादास्पद बनाना होगा।
2. सुसमाचार प्रचारक मसीही धर्म के ऐतिहासिक, मूलभूत सिद्धांतों में विश्वास करते हैं। उन सिद्धांतों का खंडन करना सुसमाचार का खंडन करना होगा। उदाहरण के लिए, ऐसे धर्म-संप्रदाय जो मसीह के प्रभुत्व को अस्वीकार करते हैं, यह भी अस्वीकार करते हैं कि मसीह का बलिदान उद्धार के लिए पर्याप्त है, इसके बजाय कर्म के सुसमाचार को सिखाते है।
3. सुसमाचार प्रचार करने वाली कलीसिया में व्यक्तिगत आत्मिक अनुभव पर ज़ोर दिया जाता है। यह विशेषता इसलिए मौजूद है क्योंकि वे व्यक्तिगत उद्धार और होशोहवास में किये विश्वास में यक़ीन करते हैं। इस विश्वास की वजह से, प्रचारक अविश्वासियो को सुसमाचार प्रचार और विश्वासियों के आत्मिक निर्माण पर ज़ोर देते हैं।
► आपकी कलीसिया इन विशेषताओं को कैसे प्रदर्शित करती है? क्या वहाँ ऐसी अन्य विशेषताएं भी हैं जो बताए की सुसमाचार प्राथमिक है?
सुसमाचार कलीसिया को अपना मिशन देता है। कलीसिया जो सुसमाचार को अपनी प्राथमिकता नहीं बनाता है वह परमेश्वर द्वारा दिए गए मिशन को भूल गया है।
[1]हमने मत्ती 28:18-20 में दी गई महान आज्ञा का अध्ययन किया है। कलीसिया का प्राथमिक कार्य क्या है?
जहाँ कहीं भी प्रचार किया जाता है, वहाँ कलीसिया का निर्माण होता है। पूरे इतिहास में सच्ची कलीसिया वहीं मिली जहां सुसमाचार का प्रचार हुआ। कलीसिया की विरासत प्रेरितों के समय से संस्थानों की निरंतरता में नहीं मिलती है, लेकिन विश्वसनीय सुसमाचार प्रचार की निरंतरता में मिलती है।
कलीसिया द्वारा बनाए गए सभी संस्थानों को सुसमाचार की प्राथमिकता पर काम करना चाहिए। उदाहरण के लिए, पासबानों के प्रशिक्षण कार्यक्रम मे उनको कलीसिया की अगुवाई मे इसके सुसमाचार प्रचार और शिष्यता मिशन को पूरा करने के लिए तैयार किया जाना चाहिए।
संस्थाएं अपने स्वयं के अस्तित्व की ख़ातिरदारी के चक्कर में असली मिशन को भूल जाती हैं। सुसमाचार के नए सिरे से ज़ोर देने से संस्थान हमेशा सुधार की ओर बढ़ते हैं।
कलीसिया विश्वास, स्तुति आराधना, मसीही जीवन और कलीसिया नीति की परंपराओं को विकसित करती है; लेकिन सुसमाचार के नए सिरे से ज़ोर देने के द्वारा परंपरा के सुधार में मार्गदर्शन होता है।
मसीह के प्रभुत्व और कलीसिया के विश्व मिशन के बीच एक सीधा संबंध है। यह मत्ती के महान आज्ञा में स्पष्ट रूप से सामने आता है। यह निश्चित रूप से है, क्योंकि स्वर्ग में और पृथ्वी पर सभी अधिकार पिता परमेश्वर द्वारा परमेश्वर पुत्र को दिए गए हैं कि कलीसिया के पास सभी जातियों को शिष्य बनाने की जिम्मेदारी है।
(जे. हर्बर्ट केन, "द वर्क ऑफ एवेंजलिस्म")
उदाहरण 1
जैसे कलीसिया प्रचार के मिशन को पूरा करने के लिए काम करती है, इसके लिए योजनाएँ बनाना, टीम बनाना, कार्यक्रम विकसित करना और समर्थन तलाशना आवश्यक है। कलीसिया व्यावहारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संस्थानों का निर्माण करती है। अक्सर, आत्मिक पुनरुत्थान के समय में संस्थाएं बनती हैं जब लोग प्रतिबद्ध होते हैं और कलीसिया अपने मिशन को पूरा करने के लिए प्रेरित होती है।
संस्थान आवश्यक हैं। एक संस्थान मात्र लोगों और संसाधनों का दीर्घकालिक संगठन है। संस्थानों के बिना, कोई कलीसिया का निर्माण नहीं होगा, कोई विदेशी मिशन नहीं होगा, बाइबल या किसी अन्य साहित्य का प्रकाशन नहीं होगा, कोई मसीही स्कूल या शैक्षणिक कार्यक्रम नहीं होंगे, और सेवकाई के लिए आर्थिक सहायता भी नहीं होगी। यहाँ तक की स्थानीय कलीसिया एक संस्थान है जो तब तक अस्तित्व में नहीं है जब तक कि लोगों का एक समूह इसके लिए प्रतिबद्ध नहीं है।
यदि कोई संस्था सफल होती है, तो यह कई लोगों और बड़ी पूंजी के साथ बड़ी हो सकती है। संस्था को बनाए रखने के लिए बहुत प्रयास और खर्च करना पड़ता है। संस्था में काम करने वाले लोगों को लगता है कि संस्थान का निर्माण प्राथमिक लक्ष्य है। वे सोचते हैं कि उनका काम संस्थान को चालू रखना है इसके बजाय कि संस्थान के असली मिशन को पूरा करें।।
हालाँकि संस्थाएं आवश्यक हैं, फिर भी उन्हें अक्सर सुसमाचार की प्राथमिकता के आधार पर आंकना और सुधारना चाहिए।
उदाहरण 2
क्योंकि सेवकाई द्वारा पैसा कमाने की क्षमता है इसलिए कुछ लोगों ने व्यवसाय के रूप में सेवकाई को शुरू किया है। सेवकाई के खर्चों के लिए सेवकाई का चीजों को बेचना गलत नहीं है, और आर्थिक सहायता को तलाशना गलत नहीं है। हालांकि, यदि कोई व्यक्ति सुसमाचार की प्राथमिकता की बजाय पैसे से ज्यादा प्रेरित होता है, तो उसका हृदय दोषी है और उसका काम परमेश्वर को प्रसन्नता नहीं देता है (1 पतरस 5:1-2, 2 पतरस 2:3)।
शिमोन एक ऐसा व्यक्ति था जो आत्मिक वरदान चाहता था ताकि उसे पद और आर्थिक लाभ हो सके, लेकिन प्रेरित ने उसे बताया कि उसके हृदय में खोट थी (प्रेरितों के काम 8:18-23)।
► एक पासबान की उस परिस्थिति में क्या गलत है जो अपनी कलीसिया को बेचने की कोशिश करता है? उसकी समझ मे की कलीसिया क्या है मे क्या गलत है?
उदाहरण 3
समन्वयता एक दूसरे धर्म द्वारा विरोधात्मक विश्वास और प्रथाओं के विषय में मसीही धर्म का मिश्रण है। नए नियम के समय से सामरी धर्म समन्वयता का उदाहरण है। विदेशी जो मूर्तियों की पूजा करते थे वे इजरायल के क्षेत्र में चले गए और इज़राइल के धर्म को उनकी मूर्ति पूजा के साथ मिला दिया; यीशु ने कहा कि वे नहीं जानते कि उन्होंने क्या उपासना की थी (यूहन्ना 4:22)।
समन्वयता का एक और उदाहरण हैती के इतिहास से भी मिलता है। जब हैती एक फ्रांसीसी उपनिवेश बस्ती थी, तो अफ्रीका से आये गुलामों को मसीहत में परिवर्तित होने की आवश्यकता थी। उन्होंने अपने पूर्व धर्मों को रोमन कैथोलिक धर्म के साथ मिलाया था। काफी हैतीवासी अब भी वूडू का अभ्यास करते हैं, जो आत्माओं की पूजा करना है, लेकिन वे मसीही चिन्हों और मसीही संतों के नामों का उपयोग करते है।
कभी-कभी समन्वयवाद हुआ क्योंकि मसीही धर्म एक ऐसे राष्ट्र के साथ जुड़ा था जो दूसरे राष्ट्र पर हावी था। लोगों को राजधारी राष्ट्र को खुश करने की आवश्यकता थी, इसलिए उन्होंने इसके धार्मिक रीति-रिवाजों को स्वीकार किया लेकिन अपनी मूल मान्यताओं को बनाए रखा।
► मसीही धर्म और अन्य धर्मों के बीच मिश्रण के कौन से उदाहरण आपने देखे हैं?
सांसारिक उद्देश्यों के कारण समन्वयता हो सकती है। अगर लोगों को लगता है कि सुसमाचार को स्वीकार करने से उन्हें आर्थिक लाभ, राजनीतिक प्रभाव, या प्रभावशाली लोगों के पक्ष में लाया जाएगा, तो वे वास्तव में परिवर्तित हुए बिना, मसीही धर्म की दिखावट को स्वीकार करते हैं। फिर, वे अपनी पुरानी मान्यताओं और प्रथाओं का पालन करते हैं लेकिन उन्हें मसीही नामों से बुलाते हैं। यह सबसे अच्छा होता है जब कलीसिया उन चीजों की पेशकश के बिना प्रचार करे जिसके कारण लोग गलत इरादों से प्रतिउत्तर देते हैं।
मसीहत विदेशी धर्म लगता है जब सुसमाचार विदेशी मिशनरियों द्वारा लाया जाता है। जो भी हो, मसीहत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इसका रोपण प्रत्येक संस्कृति मे हो और वह उस स्वरूप को ले जो कि वहाँ के घरों मे उस संस्कृति मे हो। इसे विदेशी धर्म की तरह नहीं दिखना चाहिए। हालांकि, मिशनरियों और प्रचारकों के लिए यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि संस्कृति की किस बात को मसीहत के साथ नही मिलाया जा सकता है। यह पहचान करना एक प्रक्रिया है जिसे स्थानीय मसीहियों द्वारा सहायता प्रदान की जानी चाहिए और इसे जल्दी समाप्त नहीं किया जा सकता है।
उदाहरण 4
कभी-कभी किसी धर्म को राष्ट्र का स्थापित धर्म माना जाता है। उदाहरण के लिए, कुछ देशों में, अधिकांश लोग मुस्लिम हैं। अन्य देशों में, अधिकांश लोग खुद को रोमन कैथोलिक मानते हैं। बहुत से लोग वास्तव में अपने धर्म के नैतिक आदर्शों का पालन नहीं करते है और केवल कभी-कभी धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते है; लेकिन वे कहते हैं कि वे उस धर्म के अनुयायी हैं।
बहुत से लोग खुद को मसीही कहते हैं क्योंकि उनके सामाजिक दायरे में सभी अच्छे लोगों को मसीही माना जाता है। उन्होंने वास्तव में पश्चाताप नहीं किया है। वे नैतिकता के अपने आदर्श का पालन करते हैं।
सुसमाचार पश्चाताप और मसीह की अधीनता की बुलाहट है। यीशु ने कहा कि एक व्यक्ति उसका शिष्य तब तक नहीं हो सकता जब तक कि वह स्वयं को नहीं नकारता और एक सच्चा अनुयायी नहीं बनता है (लूका 9:23)।
एक मसीही की परिभाषा को एक पापी समाज में लोकप्रिय होने के लिए अनुकूलित नहीं किया जा सकता है। एक समाज की सामान्य नैतिकता हमेशा मसीही नैतिकता से बहुत कम होती है, और एक मसीही दुनिया के साथ विरोधाभासों में रहता है।
► आपके समाज मे अकसर पश्चाताप के बिना लोकप्रिय मसीहत कैसे प्रकट होती है?
उदाहरण 5
हम यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि सभी मसीही सभी सिद्धांतों पर सहमत होंगे। मसीहियों के बीच भिन्नत है, भले ही वे बाइबल को सिद्धांतों के लिए अपने अधिकार के रूप में स्वीकार करते हैं।
कभी-कभी कलीसियाएं उन सिद्धांतों को अधिक महत्व देती हैं जो उन्हें अन्य कलीसियाओं से अलग करते हैं, लेकिन वे सिद्धांत उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं जितने कि मसीहत के मूलभूत सिद्धांत हैं। एक कलीसिया को किसी अन्य कलीसिया के लिए यह नहीं कहना चाहिए कि वो असल मसीही नहीं हैं, यदि वो कलीसियाएं मूल सुसमाचार की शिक्षा देती हैं।।
एक कलीसिया को अन्य कलीसियाओं से लड़कर अपनी पहचान स्थापित नहीं करनी चाहिए। पहले स्वयं को सुसमाचार के साथ स्थापित करना चाहिए, फिर सदस्यों के प्रतिबद्ध समूह की संगति का निर्माण करना चाहिए।
► किस आधार पर एक कलीसिया को दूसरी कलीसिया को वास्तव में सही मायने में मसीही के रूप में स्वीकार करना चाहिए?
उदाहरण 6
यहां तक कि एक सच्चे सिद्धांत पर इस हद तक जोर दिया जा सकता है कि यह अन्य सत्य का खंडन करता प्रतीत होता है। अनुग्रह पर ज़ोर देते हुए, एक कलीसिया परेमश्वर के प्रति आज्ञाकारिता की आवश्यकता को कम कर सकती है। लेकिन उद्धार पाने के क्षण पर जोर देते हुए, एक कलीसिया का शिष्य बनाने की प्रक्रिया को भूल सकती है। धर्म त्यागी के लिए परेमश्वर की विश्वसनीयता पर बल देने के द्वारा, कलीसिया धर्मत्यागी के संकट के खिलाफ़ चेतावनी देने में असफल हो सकती है। आत्मिक वरदानों का सम्मान करते हुए, कलीसिया गहरी आत्मिकता और मसीही चरित्र का सम्मान करने में असफल हो सकती है।
सिद्धांत में असंतुलन समय के साथ दिखता है और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। कोई भी शिक्षा जो कि (1) पाप के प्रति लापरवाही का कारण बनती है, (2) उद्धार के आश्वासन की संभावना को दूर करता है, (3) उस व्यक्ति के मार्ग में अधिक कठिनाइयाँ डालती है जो कि सुसमाचार का प्रतिउत्तर देता है, या (4) सुसमाचार को छुपाता है, यही शिक्षा है जो सिद्धांत को असंतुलित करती है।
कलीसिया के इतिहास में कई बार सुसमाचार को महान संस्थानों द्वारा भुला दिया गया लगता है। संस्थागतवाद, समन्वयता और सैद्धान्तिक असंतुलन जैसी त्रुटियाँ, सुसमाचार की तुलना में अधिक दिखाई देने लगी। अगुवों को आत्मिक उदाहरण माना जाता था, लेकिन वे गलत मकसद, गलत चरित्र, और सांसारिक चीजों में रुचि प्रदर्शित कर रहे थे।
परमेश्वर ने कभी-कभी कलीसिया में महान जागृति को भेजा है। जागृति के साथ दीर्घकालिक और व्यापक परिणामों के तीन पहलू हैं।
1. वहाँ धर्मशास्त्रीय सुधार है, जब एक उपेक्षित आत्मिक सत्य को पुनः प्राप्त किया जाता है।
2. वहाँ आत्मिक नवीनीकरण है, साथ ही बहुत प्रार्थना, उत्साहपूर्ण आराधना, और कई सारी आत्माओं का बचना होता है।
3. वहाँ सेवकाई की नयी विधियाँ हैं, जैसे कि कलीसिया सुसमाचार बांटने और शिष्य बनाने के नए तरीके खोजती है।
प्रोटेस्टेंट सुधार (1500 के दशक में पूरे यूरोप में) केवल अनुग्रह द्वारा सिर्फ विश्वास से उद्धार के सुसमाचार की प्राप्ति थी। हजारों लोगों ने उद्धार का अनुभव किया। वचन को आम भाषाओं में अनुवाद किया गया और उपलब्ध कराया गया।
एनाबैप्टिस्ट (1500 और बाद में पूरे यूरोप में) ऐसे लोग थे जो चिंतित थे क्योंकि सुधार के कई अनुयायियों ने सोचा था कि सही सिद्धांतों पर विश्वास करना उद्धार के लिए पर्याप्त था। बहुत से लोगों ने सुसमाचार की सच्चाई को स्वीकार करने के लिए हामी तो भर दी, लेकिन परिवर्तन का अनुभव नहीं किया। एनाबैप्टिस्टस ने व्यक्तिगत परिवर्तन पर जोर दिया।
पीटिस्ट (जर्मनी में 1600 के दशक के उत्तरार्ध) वे लोग थे जिन्हें शिष्यत्व के महत्व का एहसास था। उन्होंने मसीही परिपक्वता के लिए उन्होंने मसीही परिपक्वता के लिए छोटा झुण्ड सेवकाई और विश्वासियों को प्रशिक्षित करने की व्यवस्था को विकसित किया।
मेथोडिस्ट जागृति (इंग्लैंड में 1700 के अंत में) जॉन वेस्ले की सेवकाई के साथ शुरू हुई। इंग्लैंड की कलीसिया के अधिकांश याजकों ने इनकार कर दिया कि उद्धार का व्यक्तिगत आश्वासन संभव था। वेस्ले ने उपदेश दिया कि प्रत्येक व्यक्ति यह जान सकता है कि उसे मसीह में जीवित विश्वास और पवित्र आत्मा से उद्धार का आश्वासन है।
► आपको कौन से महान सत्य को अपने समाज में जोर देने की आवश्यकता है?
कई मसीही संस्थान, बड़े और छोटे (स्थानीय कलीसिया सहित), सुसमाचार की प्राथमिकता के लिए प्रतिबद्धता के साथ शुरू हुए। लेकिन समय के साथ, उनमें से कई उस प्राथमिकता से अलग हो जाते हैं।
कलीसिया की प्रभावशीलता को नए ढ़ंग से करने के लिए, हमें अजीब नए सिद्धांतों या नए प्रकाशन की आवश्यकता नहीं है। हमें जो कुछ चाहिए वह सुसमाचार की प्राथमिकता के सुसमाचार प्रचारवाले सिद्धान्त की प्राप्ति है।
आप अगली कक्षा की शुरुआत पाठ 5 की परीक्षा के साथ करेंगे। तैयारी में परीक्षा के प्रश्नों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें।
(1) सुसमाचार प्रचार करने वाली कलीसिया की तीन विशेषताएँ क्या हैं?
(2) वे कौन से छह तरीके हैं जिनसे एक कलीसिया सुसमाचार की प्राथमिकता खो सकती है?
(3) चार संकेत क्या हैं कि सिद्धांत असंतुलित हैं?
(4) दीर्घकालिक उन्नत्ति के तीन पहलू क्या हैं?
(5) निम्नलिखित में से प्रत्येक के बारे में एक सही कथन लिखें:
प्रोटेस्टेंट सुधार ...
एनाबैप्टिस्टस …
पीटिस्ट्स…
मेथोडिस्ट जागृति…
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