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प्रत्येक बिंदु के लिए, किसी को वचन के पदों को पढ़ना है, फिर किसी को बिंदु के स्पष्टीकरण को पढ़ने दें। कक्षा चर्चा के प्रत्येक प्रश्न पर संक्षेप में चर्चा करें।
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by Stephen Gibson
प्रत्येक बिंदु के लिए, किसी को वचन के पदों को पढ़ना है, फिर किसी को बिंदु के स्पष्टीकरण को पढ़ने दें। कक्षा चर्चा के प्रत्येक प्रश्न पर संक्षेप में चर्चा करें।
निम्नलिखित बिन्दु सुसमाचार के मुख्य तत्व हैं। किसी व्यक्ति का उन्हें पूरी तरह से समझे बिना बचाया जाना संभव है। फिर भी, इनमें से किसी भी बिन्दु का खंडन सुसमाचार की नींव को हटा देता है। एक व्यक्ति या संगठन जो इन मुख्य तत्वों में से किसी का भी इंकार करता है, उद्धार के एक झूठे उपाय पर भरोसा करते हुए, एक अन्य सुसमाचार को विकसित करता है।
जब आप किसी के साथ सुसमाचार को बांटते हैं, तो कुछ अंक विशेष रूप से त्रुटियों के कारण महत्वपूर्ण होंगे जिन्हें वह पहले से ही मानता है। उदाहरण के लिए, यदि वह मानता है कि उद्धार केवल एक निश्चित संगठन के माध्यम से है तो वह यह विश्वास करेगा कि उद्धार के लिए संगठन की सदस्यता की आवश्यकताएं अनिवार्य हैं। उसे यह जानना होगा कि एक व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से क्षमा प्राप्त करता है और परमेश्वर के साथ सीधे संबंध में आता है।
(1) परमेश्वर ने मनुष्य को अपनी ही छवि में रचा ताकि परमेश्वर उसके साथ रिश्ते स्थापित कर सके (उत्पत्ति 1:27, प्रेरितों के काम 17:24-28)
यह सत्य हमारे अस्तित्व के उद्देश्य और उद्धार के लक्ष्य को दर्शाता है। इस सत्य का खंडन उन धर्मों के द्वारा किया जाता है जो व्यक्तित्व वाले परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं। यह सत्य दुनिया की वास्तविक समस्या को दर्शाता है; लोग परमेश्वर के साथ रिश्ते मे नहीं
► क्या हो अगर कोई व्यक्ति यह नहीं मानता कि परमेश्वर उससे प्यार करता है?
(2) पहले लोगों ने पाप किया और परमेश्वर से अलग हो गए (उत्पत्ति 3:3-6)।
यह पाप की उत्पत्ति और दुनिया की स्थिति के वास्तविक कारण को दर्शाता है। दुनिया पाप के कारण दुःख और कष्ट का स्थान है। परमेश्वर के प्रारुप के कारण अभी भी खुशी और उद्देश्य क़ायम है, लेकिन दुनिया परमेश्वर की योजना के मुताबिक नहीं है।
► क्या होगा अगर कोई व्यक्ति यह नहीं मानता कि पाप ही दुनिया की वास्तविक समस्या है?
(3) प्रत्येक जन परमेश्वर से अलग और उसके प्रति अवज्ञाकारी पैदा हुआ है (रोमियों 3:10-23)।
प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर के प्रति इच्छानुसार पाप करने का दोषी है। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसने हमेशा वही किया है जो सही है।
► क्या हो अगर कोई व्यक्ति सोचता है कि वह अपने द्वारा की गई चीजों को उचित सिद्ध कर सकता है?
(4) हर पापी जिसे दया नहीं मिलती, उसका परमेश्वर द्वारा न्याय किया जाएगा और अनन्त दंड को भोगेगा (इब्रानियों 9:27, रोमियों 14:12, प्रकाशितवाक्य 20:12)।
यह पापी की मुक्ति की आवश्यकता की गंभीरता और तात्कालिकता को दर्शाता है।
► क्या हो अगर कोई व्यक्ति यह नहीं मानता है कि एक धर्मी परमेश्वर है जो उसके पापों के बारे में क्रोधित है?
(5) कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के विरुद्ध किए गए पापों का भुगतान करने के लिए कुछ नहीं कर सकता है (रोमियों 3:20, इफिसियों 2:4-9)।
अच्छे काम और उपहार पाप के लिए भुगतान नहीं कर सकते, क्योंकि पाप अनंत परमेश्वर के खिलाफ एक जुर्रत है और सब कुछ पहले से ही उसका है।
► क्या हो अगर कोई व्यक्ति यह मानता हो कि उसे स्वयं को क्षमा के योग्य बनाना चाहिए?
(6) क्षमा करने का एक आधार होना चाहिए, क्योंकि पाप गंभीर है और परमेश्वर न्यायी है (रोमियों 3:25-26)।
परमेश्वर क्षमा करने की इच्छा रखता है; लेकिन, अगर वह बिना किसी आधार के क्षमा कर देता है, तो पाप तुच्छ प्रतीत होगा, और परमेश्वर अन्यायपूर्ण प्रतीत होगा।
► मसीह की मृत्यु क्यों आवश्यक थी?
(7) परमेश्वर के पुत्र, यीशु ने एक पाप रहित जीवन जीया और बलिदान के रूप में मर गया ताकि हमारे पापों को क्षमा किया जा सके (यूहन्ना 3:16, रोमियों 5:8-9)
क्योंकि यीशु परमेश्वर का पुत्र है, उसके बलिदान को अनंत मूल्य है और दुनिया में किसी को भी क्षमा करने का आधार प्रदान करता है। यदि वह सिर्फ एक आदमी होता, तो उसके बलिदान का सीमित मूल्य होता। यीशु का लहू हमारे लिए दिए गए उनके जीवन का प्रतिनिधित्व करता है। उसके लहू के बिना कोई उद्धार नहीं है (इब्रानियों 9:22)। यदि वह परमेश्वर नहीं होता, तो वह हमें पूरी तरह से बचा नहीं सकता था; और, हम बिना आशा के, उद्धार के दूसरे तरीके देख रहे होते।
► क्यों कुछ धर्मों का मानना है कि लोग कर्मों द्वारा बचाए जाने चाहिए?
(8) यीशु मृतकों में से शारीरिक रूप से जी उठे, उन्होंने परमेश्वर के पुत्र के रूप में अपनी पहचान को साबित किया और अनन्त जीवन देने की अपनी सामर्थ का प्रदर्शन किया (यूहन्ना 20:24-28, प्रकाशितवाक्य 1:18)।
यीशु के पुनरुत्थान से इंकार करने वाले पंथ आमतौर पर उनके ईश्वर होने और उद्धार के लिए उनके बलिदान की प्रचुरता से भी इंकार करते हैं। फिर, वे उद्धार के अन्य उपाय का आविष्कार करते हैं।
► वे कौन सी बातें हैं जो हम जानते हैं क्योंकि यीशु मृतकों में से जी उठे हैं?
(9) यीशु का बलिदान सभी पापों की क्षमा के लिए पर्याप्त है (1 यूहन्ना 1:9, 1 यूहन्ना 2:2)।
यदि कोई व्यक्ति इस सच्चाई से इंकार करता है, तो वह कर्मों के सुसमाचार पर विश्वास करेगा। कई धर्मो का विश्वास है कि एक व्यक्ति कैसे आंशिक रूप से अपना उद्धार प्राप्त कर सकता है। यह लोगों को एक धार्मिक संगठन के नियंत्रण में रखता है जो बताता है कि उन्हें उद्धार प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए।
► क्यों कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें अपने धार्मिक संगठन के बिना बचाया नहीं जा सकता है?
(10) परमेश्वर हर उस व्यक्ति को क्षमा करता है जो स्वीकार करता है कि वह पापी है, अपने पाप का पश्चाताप करता है, और परमेश्वर के वादों को मानता है कि वह क्षमा करेगा (मरकुस 1:15, 1 यूहन्ना 1:9)।
किसी भी मानव संगठन को अधिकार नहीं है कि उद्धार के लिए जो आवश्यक है उसमें मिलावट करें या उद्धार के लिए किसी अन्य उपाय को प्रस्तुत करें।
► किस व्यक्ति को यह मानने का अधिकार है कि वह बच गया है?
(11) पश्चाताप का अर्थ है कि व्यक्ति अपने पापों के लिए क्षमा चाहता है और अपने पापों को छोड़ने के लिए तैयार है (यशायाह 55:7; यहेजकेल 18:30, यहेजकेल 33:9-16; मत्ती 3:8)।
पश्चाताप का मतलब यह नहीं है कि परमेश्वर को स्वीकार करने से पहले व्यक्ति को अपने जीवन को परिपूर्ण बनाना है; केवल परमेश्वर ही पापियों को उनके पापों की शक्ति से मुक्ति दिला सकते हैं। पश्चाताप का मतलब है कि व्यक्ति को अपने पापों के लिए इतना खेदित है कि वह अपने पापों को छोड़ने के लिए तैयार है। यदि कोई व्यक्ति अपने पापों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है, तो उसे क्षमा नहीं किया जा सकता। अगर कोई व्यक्ति अभी भी अपनी इच्छा से पाप में जी रहा है, तो उसने पश्चाताप नहीं किया है।
► पश्चाताप क्यों आवश्यक है?
(12) एक पश्चाताप करने वाला पापी, परमेश्वर से प्रार्थना करता है और परमेश्वर से उसे क्षमा करने के लिए कहता है, वह विश्वास करने पर क्षमा प्राप्त करता है (रोमियों 10:13, प्रेरितों 2:21)।
प्रत्येक व्यक्ति को यीशु की वजह से परमेश्वर की दया प्राप्त होती है। किसी व्यक्ति को परमेश्वर की क्षमा प्राप्त करने के लिए किसी संस्था या मानव प्रतिनिधि की अनिवार्यता नही है। वह व्यक्ति इसे व्यक्तिगत रूप से प्राप्त करता है और परमेश्वर के साथ सीधे रिश्ता शुरू करता है।
► हम कैसे निश्चित कर सकते हैं कि एक व्यक्ति क्षण भर में मसीही बन सकता है?
(1) कुछ अनुच्छेदों में, वर्णन करें कि आपके उद्धार के समय इनमें से एक या दो बिंदुओं का विशेष रूप से आपके लिए कितना महत्व था।
(2) शोध करने के लिए एक पंथ या गैर-मसीही धर्म चुनें। 2-3 पृष्ठों में, बताएं कि वे सुसमाचार के कुछ आवश्यक बिंदुओं को कैसे नकारते हैं। वर्णन करे वे कौन सा गलत सुसमाचार बताते हैं और बताये कैसे वो गलत सिद्धांतों पर निर्भर है। वर्णन करे कि आप सत्य के लिए कैसे उन्हें पवित्र शास्त्र से साक्ष्य देंगे।
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