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क्या छात्रों ने मिलाप चित्र का उपयोग करते हुए अपनी सुसमाचार प्रस्तुतियों पर विवरण किया है।
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by Stephen Gibson
क्या छात्रों ने मिलाप चित्र का उपयोग करते हुए अपनी सुसमाचार प्रस्तुतियों पर विवरण किया है।
पौलुस ने रोम की यात्रा करने की योजना बनाई। विश्वासियों को मजबुत करना (रोमियों 1:11-12), और स्पेन की सेवा यात्रा के लिए रोमियों की कलीसिया का समर्थन प्राप्त करने के लिए (रोमियों 15:24), वह वहां पर सुसमाचार प्रचार करना चाहते था (रोमियों 1:15)।
रोमियों को पत्र लिखने का उद्देश्य रोमी विश्वासियों को पौलुस और उनके उद्धार का धर्मशास्त्रीय परिचय देना था। पत्र उद्धार के धर्मशास्त्र को समझाकर विश्वाव्यापी मिशनरी कार्य के लिए आधार को दर्शाता हैं।
पौलुस ने स्पेन में मिशनरी प्रयास शुरू करने के लिए एक आधार के रूप में रोम में कलीसिया का उपयोग करने की योजना बनाई, जो पश्चिम में सबसे पुराना रोमन उपनिवेश और दुनिया के उस हिस्से में रोमन सभ्यता का केन्द्र था।
पौलुस की रोम यात्रा उस तरह से नहीं हुई जैसी उन्होंने योजना बनाई थी। उसे येरुशलेम में गिरफ्तार कर लिया गया था। जब उसे लगा कि उसे न्याय नहीं मिलेगा, तो उसने कैसर से अपील की। एक खतरनाक यात्रा के बाद, जिसमें एक जहाज़ की तबाही शामिल थी, वह ए डी 60 में एक कैदी के रूप में रोम पहुँचा। हालांकि उसके लिए चीज़े सीमित कर दी गयीं थी पर वह मुलाकातियों को मिलने के लिए स्वतंत्र था; और, उसके पास एक सेवा थी जो पूरे नगर में पहुँची (प्रेरितों के काम 28:30-31)। पौलुस ने कहा कि रोम की घटनाओं ने सुसमाचार को आगे बढ़ाने का काम किया है (फिल 1:12)। कैसर के घर में भी विश्वासी थे। उन्हें दो साल बाद रिहा कर दिया गया था। उन्होंने स्पेन की अपनी यात्रा की या नही यह अज्ञात है।
ऐसे कई सवाल हैं जो स्वाभाविक रूप से पौलुस के अनुरोध के जवाब में उठेंगे कि वे उसकी सेवकाई यात्रा शुरू करने में मदद करें। कोई पूछ सकता है ‘‘क्यों आप ही को जाना चाहिए?" इसलिए उसने अपने सुसमाचार प्रचार के कार्य के प्रति समर्पण का उल्लेख करते हुए पत्र की शुरूआत की (रोमियों 1:1)। बाद में उसने अपने विशेष बुलाहट और सफलता को प्रेरित के रूप में अन्य जातियों को स्पष्ट कर दिया (रोमियो 15:15-20)।
एक अन्य संभावित प्रश्न, ‘‘सभी को सुसमाचार सुनने की आवश्यकता क्यों है? शायद इस संदेश की हर जगह आवश्यकता नहीं है’’ पौलुस ने दुनिया भर (रोमियो 1:14-16; रोमियो 10:12) में मानव जाति के लिए सुसमाचार (रोमियो 10:14-15) की क्षमता और सेवकाई कार्यों की अत्यावश्यकता के बारे में समझाया। उसने दिखाया कि यह संदेश जगत के हर व्यक्ति पर लागू होता है और प्रत्येक व्यक्ति को इसें सुनने की सख्त जरूरत है।
यह पत्र अभी भी मिशनरी कार्य को आधार प्रदान करने के अपने मूल उद्देश्य को पूरा करता है। हालांकि, यह और अधिक करता है। जैसे कि पौलुस ने स्पष्ट किया कि सभी को संदेश सुनने की आवश्यकता क्यों हे, उसने बताया कि संदेश क्या है और क्यों लोगों को केवल इस तरह से बचाया जा सकता है। उसने कुछ सामान्य आपत्तियों का प्रतिउत्तर भी दिया । उसने जो उपदेश दिया, उसकी व्याख्या और बचाव के लिए उसने अधिकांश पुस्तक को लिया और अपनी संरचना प्रदान की।
रोमियों में हमारे पास जो है वह उद्धार की धर्मशास्त्रीय व्याख्या है। पौलुस के उद्धार के धर्मशास्त्रीय ने यहूदीवादी के खिलाफ तत्काल बचाव प्रदान किया; और यह सोटेरोलॉजी (उद्धार के सिद्धांत) में आधुनिक त्रुटियों को ठीक करने का काम करता है।
विलियम टाइन्डेल ने रोमियों की पुस्तक की अपनी प्रस्तावना में कहा, पौलुस का मन इस पत्री में मसीह के सुसमाचार की सारी सीख को संक्षेप में समझाने और सभी पुराने नियम के लिए एक परिचय तैयार करने के लिए था।[1]
इतिहास के माध्यम से, परमेश्वर ने रोमियों को लिखे पत्र का उपयोग सबसे महत्वपूर्ण सत्यों को पुनर्स्थापित करने के लिए किया जब उन्हे भूला दिया गया था।
386 में, अगस्टीन ने रोमियों 13:13-14 को पढ़ने के बाद अपने पाप के जीवन से सम्बन्ध तोड़ने को प्रतिबद्ध किया।
1515 में, मार्टिन लूथर को रोमियों 1:17 का अर्थ समझ में आ गया। उन्होंने देखा कि जो परमेश्वर के दण्ड से बचेगा, वो वही होगा जिसके पास विश्वास है। इस बात ने उन्हें उद्धार के आश्वासन का आधार दिया, जिसकी उन्होंने लंबे समय से तलाश की थी। यह उनके संदेश का आधार बन गया कि केवल विश्वास ही वह मार्ग है जिससे हम बच सकते हैं।
1738 में, जॉन वेस्ले को व्यक्तिगत उद्धार का आश्वासन मिला जिसे वह वर्षों से खोज रहे थे। यह तब हुआ जब वह अन्य युवकों के साथ एक सभा में थे, जो नियमित रूप से यह अध्ययन करने के लिए इकट्ठा होते थे कि कैसे शास्त्रीय मसीहत का पालन किया जाए। जब कोई लूथर की रोमियों की पुस्तक की प्रस्तावना को पढ़ रहा था तो वेस्ली ने हृदय में ‘‘अजीब सी गर्माहट’’ को मससूस किया।
[2]उसने गवाही दी ‘‘मैंने महसूस किया कि मैंने मसीह पर भरोसा किया, केवल मसीह पर, मेरे उद्धार के लिये; और मुझे एक आश्वासन दिया गया कि उसने मेरे पापों को दूर कर दिया है, यहां तक की मेरे पापों को भी ले लिया है, और मुझे पाप और मृत्यु की व्यवस्था से बचाया।"[3]
इन तीनों पुरूषों के लिए, रोमियों की पुस्तक के संदेश का समझना उत्साहपूर्ण प्रचार के लिए एक प्रेरणा थी। यह पुस्तक अभी भी उद्धार के धर्मशास्त्र को समझाकर सेवकाई के लिए एक आधार प्रदान करने के अपने उद्देश्य को पूरा करती हैं।
रोमियों की पूरी पुस्तक 1:16-18 में कथनों की व्याख्या हैं।
वचन 1-14 में सब कुछ वचन 15 में कथन की ओर ले जाता है जहाँ पौलुस ने कहा, ‘‘सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूं’’। वचन 16-18 संक्षिप्त रूप से समझाते हैं कि सुसमाचार क्या हैं और सभी को इसकी आवश्यकता क्यों है। सुसमाचार वह संदेश है जो पापियों को विश्वास के द्वारा उचित ठहरा सकता हैं। सभी को इस संदेश की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि वे परमेश्वर के क्रोध के अधीन है।
रोमियों की पुस्तक के प्राथमिक उद्देश्य को बताने का एक और तरीका यह है कि यह सुसमाचार की व्याख्या है, जो परमेश्वर की आज्ञा/आदेश पर आधारित है कि जो कोई विश्वास करता है वह बच जाएगा और जो कोई विश्वास नहीं करता वह दण्डित किया जाएगा।
रोमियों की पुस्तक का चरम उत्कर्ष 10:13-15 में आता है, जहाँ पौलुस वर्णन करता है कि क्यों संदेशवाहक/दूत को सुसमाचार लेने की जरूरत हैं। विश्वास के द्वारा लोग बचाए जा रहें हैं, लेकिन जब तक वे इसे नहीं सुनते तब तक वे विश्वास नहीं करेगें।
इस पत्री का सामान्य उद्देश्य परमेश्वर के शाश्वत, अपरिवर्तनीय उद्देश्य या आदेश को प्रकाशित करना है, जो यह है, ‘‘जो विश्वास करता है वह बचाया जाएगा; जो विश्वास नहीं करता वह दण्डित किया जाएगा’’
(जॉन वेस्ली)
सुसमाचार को केवल रोमियों की पुस्तक से वचनों का उपयोग करके समझाया जा सकता हैं। सुसमाचार की इस प्रस्तुति को कभी-कभी ‘‘रोमी सड़क’’ कहा जाता है।
प्रत्येक आयतों के लिए स्पष्टीकरण का पहला वाक्य याद रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
रोमियों 3:23
“इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है।“
प्रत्येक व्यक्ति ने उन चीजों को करके पाप किया है जो वे जानते हैं कि गलत हैं।
यह वचन लोगों की वास्तविक समस्या को दिखाता है। उन्होंने परमेश्वर की बात नहीं मानी; उन्होंने जानबूझकर परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया है। कोई भी व्यक्ति बख़्शा नहीं जायेगा। किसी भी व्यक्ति को हमेशा सही होने के आधार पर पमेश्वर द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता हैं।
इस बात पर और ज़ोर देने के लिए, आप 3:10 (“एक भी धर्मी नहीं है’’) और 5:12 (‘’मृत्यु से सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया’’) का उपयोग कर सकते हैं।
रोमियों 6:23
‘‘क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन हैं’’।
पापीयों ने अनन्त मृत्यु कमायी है, लेकिन परमेश्वर यीशु मसीह के द्वारा उपहार के रूप में अनन्त जीवन को प्रदान करते है।
यह वचन दिखाता है कि पाप इतना गंभीर क्यों है। पाप के कारण, हर व्यक्ति मृत्यु दंड का भागी है। यह अनन्त मृत्यु है और हर पापीं परमेश्वर के न्याय का पात्र है।
हमने जो मृत्यु अर्जित की है, उसके विपरीत परमेश्वर जीवन का उपहार प्रदान करते है, जिसे हमने अर्जित नहीं किया हैं।
रोमियों 5:8
‘‘परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा’’
परमेश्वर का उपहार हमारे लिए मसीह की मृत्यु के द्वारा प्रदान किया गया है।
परमेश्वर हमें छोडने को तैयार नहीं थे उस न्याय को प्राप्त करने के लिए जिसके लिए हम हकदार थे। क्योंकि वह हमसे प्रेम करते है, उन्होंने हमारे लिए दया को प्राप्त करने के लिए एक मार्ग उपलब्ध कराया। यीशु बलिदान के रूप में मर गए ताकि हम क्षमा किया जा सके। हम उद्धार पाने के योग्य बने इस के लिए परमेश्वर ने हमें द्वारा कुछ करने के लिए हमारा इंतजार नहीं किया - यह हमारे पास आता है जब हम पापी है। उद्धार अच्छे लोगों को नहीं, बल्कि पापींयों के लिए प्रदान किया गया है।
रोमियों 10:9
“कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर… अपने मन से विश्वास… तू निश्चय उद्धार पाएगा।"उद्धार की एकमात्र आवश्यकता पापी के लिए यह मानना है कि वह पापी हैं और यीशु की मृत्यु और पुनरूत्थान के कारण परमेश्वर की क्षमा के वायदे पर विश्वास करता है।
पश्चाताप के बारे में क्या ? अगर कोई व्यक्ति स्वीकार करता हैं कि उसने गलत किया हैं और चाहता है कि उसे माफ किया जाना चाहिए तो इसका तात्पर्य है कि वह अपने पापों को छोड़ने को तैयार हैं।
रोमियों 10:13
‘‘क्योकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा’’
उद्धार का प्रस्ताव प्रत्येक व्यक्ति को है।
किसी को भी बाहर नहीं निकाला गया है। अन्य कोई योग्यता मौजूद नहीं हैं।
रोमियों 5:1
‘‘विश्वास से धर्मी ठहरे, हमें परमेश्वर के साथ शांति है’’
परमेश्वर के वायदों पर विश्वास करना हमें परमेश्वर का मित्र बनाता है, अब हम दोषी नहीं ठहराए जाते हैं।
परमेश्वर के साथ शांति का मतलब है कि अब हम उसके शत्रु नही हैं, हमारा मेल-मिलाप हो गया है। जो पाप हमें परमेश्वर से अलग करता है उसे रास्ते से हटा दिया गया है। न्यायसंगत होने का मतलब है कि अब दोषी के रूप में गिने नहीं जाना। विश्वास द्वारा न्यायसंगत होने का मतलब है कि परमेश्वर के वादे पर विश्वास करना हमारी क्षमा के लिए आवश्यक है।
रोमियों 8:1
“सो अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं: क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं।"
क्योंकि हम मसीह से जुड़े हुए है, इसलिए अब हम उन पापों के लिए दोषी नहीं ठहरते जो हमने किए हैं।
मसीह ने एक पाप रहित जीवन जीया और क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा न्याय की आवश्यकता को पूरा किया। उसके साथ विश्वास के द्वारा हम पहचाने जाते है और पिता परमेश्वर के द्वारा स्वीकार किये जाते हैं। परमेश्वर हमारे साथ ऐसा व्यवहार करता है जैसे कि हमने कभी पाप नहीं किया हैं।
निष्कर्ष
बता दें कि एक पापी को परमेश्वर से प्रार्थना करके बचाया जा सकता है, यह स्वीकार करते हुए कि वह एक पापी हैं और यीशु के बलिदान और पुनरूत्थान के आधार पर क्षमा मांग रहा हैं।
इस विधि को सीखने और अभ्यास करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि पहले रोमियों में इस्तेमाल होने वाले हर वचन को गोलाकार या रेखांकित करके चिन्हित करें। फिर इसके उपयोग के क्रम को दर्शाने वाले हर वचन के पास एक संख्या डाले। उदाहरण के लिए: पहले इस्तेमाल किए जाने वाले पद के बगल में, संख्या 1 लिखें।
सुसमाचार को प्रस्तुत करने का अभ्यास करें। हर वचन को पढ़े और स्पष्टीकरण दे जो इसके अनुसार है। हर वचन के बाद पहले वाक्य में मौजूद अवधारणाओं को शामिल करना सुनिश्चित करें (ऊपर) । यदि आवश्यक हो तो अन्य वाक्यों का उपयोंग करके, जिस भी स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो, उसे जोड़ें। इस पाठ में दिए गए सटीक शब्दों का उपयोग करना आवश्यक नहीं हैं।
तब तक अभ्यास करें जब तक आप बाइबल को छोड़कर कुछ भी देखे बिना नहीं कर लेते हैं।
कक्षा के अगुए के लिए सूचना: समूह के लिए दो या तीन छात्रों को रोमी मार्ग के उपयोग का वर्णन करना है। समूह को उन विधियों पर चर्चा करनी है जिससे वे प्रस्तुति में सुधार कर सकें। फिर, छात्रों को अभ्यास के लिए जोड़ो में विभाजित करें। हर छात्र को दो बार अलग-अलग श्रोताओं के सामने प्रस्तुति देनी चाहिए।
(1) रोमी मार्ग का उपयोग करते हुए, कम से कम तीन लोगों को सुसमाचार प्रस्तुत करें। प्रत्येक वातर्पालाप के बारे में एक अनुच्छेद लिखें और जब अगले कक्षा सत्र में आते हो तो उसके विषय में बताने के लिए तैयार रहें।
(2) स्मृति से लिखने के लिए तैयार रहें (केवल अपने पवित्रशास्त्र का उपयोग करके) रोमी मार्ग के पवित्रशास्त्र के संदर्भ और अगले कक्षा सत्र की शुरूआत में हर एक के लिए कम से कम एक स्पष्टीकरण।
(3) अगला पाठ सुसमाचारीय प्रचार के विषय में है। इस पाठ की तैयारी के लिए, प्रचारक प्रवचन की रूपरेखा या सारांश लिखें, जिसका आपने प्रचार किया है, जिसे आपने सुना है, या जिसे आप विकसित करना चाहते हैं। इसे अगले कक्षा सत्र में अपने साथ लेकर आऐ।
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रोमी मार्ग सुसमाचार प्रस्तुति में उपयोग किये गए वचनों के संदर्भ लिखे। संदर्भ के नीचे, स्पष्टीकरण का कम से कम एक वाक्य लिखें। वचनों को नहीं लिखना है।
(1) रोमियों _____________
(2) रोमियों _____________
(3) रोमियों _____________
(4) रोमियों _____________
(5) रोमियों _____________
(6) रोमियों _____________
(7) रोमियों _____________
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